हिंदी देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, लेकिन क्या नई पीढ़ी इसे अनकूल समझती है? क्या अंग्रेजी बनती जा रही है महत्वकांक्षा और उन्नति की सूचक? क्या हिंदी साहित्य की किताबें शेल्फ पर पड़े-पड़े धूल खा रही हैं? कितने ही लोग ये कहने में गर्व महसूस करते हैं कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, पर इसके बावजूद उन्हें ये पढ़नी या लिखनी नहीं आती है? एबीसीडी तो फर्राटे से बोल लेते हैं, लेकिन क ख ग में जुबान अटक जाती है। हिंदी किताब पढ़ने वालों को देहाती या हिंदी मीडियम कहकर बुलाया जाता था, लेकिन तकनीक ने इस सोच को तोड़ने में अच्छी खासी मदद की है।
हिंदी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यहां ये बात भी ध्यान रखने वाली है कि हिंदी अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी। अब हिंदी की भाषा, परिभाषा और रूपरेखा में बदलाव आया है। 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है और इस अवसर पर हम आज इसके नए रूप के बारे में ही बात करेंगे।