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सुप्रीम कोर्ट भी हैरान : जिस आईटी एक्ट-66 A को ७ साल पहले किया निरस्त किया जा चुका है , उसी में पुलिस FIR कर रही है

तत्कालीन न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने कहा था कि यह प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को स्पष्ट रूप से प्रभावित करता है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि 66ए का मौजूदा दायरा बहुत व्यापक है और ऐसे में कोई भी व्यक्ति नेट पर कुछ भी पोस्ट करने से डरेगा.Supreme Court bans Allahabad High Court verdict describing medical system  'Ram Bharosa' in UP | Uttar Pradesh में मेडिकल सिस्टम 'राम भरोसे' बताने  वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि आईटी एक्ट की धारा-66 ए जो कोर्ट से निरस्त हो चुकी है उसके बाद भी पुलिस इसके अंतर्गत केस दर्ज कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि 2015 में श्रेया सिंघल केस में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा-66ए को निरस्त कर दिया था इसके बावजूद देश भर में हजारों केस 66 ए के तहत दर्ज किया गया और केस पेंडिंग है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा ये स्थिति भयानक है

सुप्रीम कोर्ट में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की ओर से दाखिल अर्जी में गुहार लगाई गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह तमाम थाने को एडवाइजरी जारी करे कि 66 ए में केस दर्ज न किया जाए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से उसे खारिज किया जा चुका है। सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि ये आश्चर्य की बात है कि 2015 में श्रेया सिंघल संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने 66 ए को निरस्त कर दिया था और फिर भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो रहा है। ये भयानक स्थिति है।

याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख ने कहा कि देश भर में जजमेंट के बाद भी हजारों केस दर्ज किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया और कहा कि दो हप्ते में आप जवाब दाखिल करें। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रावधान सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया लेकिन बेयर एक्ट में अभी भी धारा-66 ए का उल्लेख है और नीचे लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट इसे निरस्त कर चुका है। तब सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि क्या पुलिस नीचे नहीं देख पा रही? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते में केंद्र सरकार जवाब दाखिल करे। ये स्तब्धकारी है। हम कुछ करेंगे।

सभी जिला अदालतों को दी जाए जानकारी

याचिका में गुहार लगाई गई है कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से कहा जाए कि देश भर की जिला अदालतों को अवगत कराया जाए कि श्रेया सिंघल मामले में दिए जजमेंट पर संज्ञान लें और ध्यान रखें कि 66 ए के केस में कोई सफर न करे। साथ ही हाई कोर्ट से कहा जाए कि वह निचली अदालत में पेंडिंग केसों के बारे में जानकारी मांगें और सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट पर अमल के लिए कहें। साथ ही गृह मंत्रालय से कहा जाए कि वह देश भर के थानों को एडवाइजरी जारी करे कि 66ए के तहत केस दर्ज न हो क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस धारा को निरस्त कर चुकी है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का 66 ए के मामले में फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के अपने ऐतिहासिक फैसले में आई टी एक्ट की धरा 66 ए को पूरी तरह खारिज कर दिया था, जिसमे पुलिस को अधिकार था की वो कथित तौर पर आपत्तिजनक कंटेंट सोशल साईट या नेट पर डालने वालों को गिरफ्तार कर सकता था। अदालत ने कहा था कि ये कानून अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा था कि एक्ट के प्रावधान में जो परिभाषा थी और जो शब्द थे वो स्पष्ट नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक कंटेंट जो किसी एक के लिए आपत्तिजनक होगा तो किसी दूसरे के लिए नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने वाले अपने एक ऐतिहासिक फैसले में अदालत ने कहा था कि धारा 66 ए से लोगों के जानने का अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होता है।

तत्कालीन जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच न कहा था कि यह प्रावधान साफ तौर पर संविधान के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि 66 ए का जो मौजूदा दायरा है वो काफी व्यापक है और ऐसे में कोई भी शख्स नेट पर कुछ पोस्ट करने से डरेगा। ये विचार अभिव्यक्ति के अधिकार को खत्म करता है। ऐसे में 66ए को हम गैर संवैधानिक करार देते हैं।

ब क्यों उठा था ये मसला ये भी बहुत अहम है
शिवसेना चीफ रहे बाल ठाकरे की मौत के बाद मुंबई की लाइफ अस्त-व्यस्त होने पर फेसबुक पर टिप्पणी की गई थी। घटना के बाद टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी हुई थी और इसके बाद इस मामले में लॉ स्टूडेंट श्रेया सिंघल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी और आईटी एक्ट की धारा-66 ए को खत्म करने की गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में अपने ऐतिहासक फैसले में इस एक्ट को निरस्त कर दिया था। अब याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद भी हजारों केस दर्ज हो रहे हैं।

 

 

 

 

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