राग का बंधन मनुष्य के मन को बांधता है, उसकी आत्मा को जकड़ता है। हम अनादिकाल से संसार में भटक रहे हैं। हमारे उस भटकाव का मूल कारण हमारा राग है।
परिवार हमें नहीं बांधता, धन हमें नहीं बांधता, परिवार और धन के प्रति हमारा जो राग भाव है, वह हमें बांधता है। जहां राग है, वहां द्वेष भी है। राग और द्वेष का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। राग की तह के तले ही द्वेष भी बंधा हुआ है।
आज जिससे हमें राग है, कल वही हमारा द्वेष हो जाने वाला है। आज हम जिसके लिए मरने को तैयार हैं, कल ही उसे मारने को तैयार भी हो सकते हैं। किसी के लिए मरने को तैयार होना राग है, किसी को मारने को तैयार होना द्वेष है। जिसके लिए हम मारने को तैयार होते हैं और जिसे मारने को तैयार होते हैं, दो अलग-अलग पात्र नहीं हैं।
हम उसे ही मारने को तत्पर होते है, जिसके लिए मरने को तत्पर रहते हैं, पर जो गहनतम सत्य है वह यह है कि मरने और मारने के क्रम में हम अनादिकाल से मरते आ रहे हैं। जीवन को हमने ठीक से जाना ही नहीं, मृत्यु से ही आज तक घिरे रहे हैं। इसलिए यदि कहा जाये कि राग ही मृत्यु है, तो गलत नहीं होगा।
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News Source: https://royalbulletin.in/anger-and-hatred/20801