शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म के आगमन के समय पृथ्वी का कण-कण बसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित हो जाता है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति भी होली खेलने को आतुर है।
इसी अवसर पर होली का पर्व आता है। होली के उत्साह में बच्चे और बड़े सभी जोश में आ जाते हैं। प्राचीन काल से चले आ रहे इस पर्व का स्वरूप आज काफी बिगड़ चुका है। होली के रंगों में मिलावट के कारण कई लोगों को इस रंग से होने वाले दर्द से महीनों तक दो-चार होना पड़ता है। कई लोगों पर ये रंग जीवन भर के लिए अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
आज बाजार में मिलने वाले सभी रंग अलग-अलग केमिकल के मिश्रण से बनते हैं। इसमें कुछ अम्लीय पदार्थ और कुछ क्षारीय पदार्थ होते हैं। इन्हें तैयार करने का मुख्य मकसद सिर्फ कमर्शियल है। किसे सोचने की जरूरत है कि इनसे लोगों को नुकसान होगा या फायदा।
ये रासायनिक रंग सस्ते और आसानी से उपलब्ध होते हैं और कम मात्रा में पानी में मिलाने पर बहुत चमकीले रंग देते हैं। इसलिए लोग होली में इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं।
होली को और रंगीन बनाने के चक्कर में लोग रंगों के पीछे छिपे खतरों को नजरअंदाज कर देते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि इससे पहले कि होली में लगा रंग फीका पड़ जाए, उनके हाथों, पैरों और चेहरों पर दानों के छोटे-छोटे दाने, फुंसियां, छाले उभर आते हैं। अच्छे इलाज के बाद ही ये शांत हो जाते हैं, लेकिन त्वचा का रंग फीका पड़ जाता है।
जिन लोगों की त्वचा रूखी होती है उनके लिए उन रंगों का प्रभाव और भी हानिकारक होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं और बच्चों की कोमल त्वचा को इन रंगों से ज्यादा नुकसान पहुंचता है। होली के मौके पर अक्सर लोग महिलाओं के ऐसे नाजुक अंगों पर रंग लगाते हैं, जो अभद्रता का प्रतीक होता है।
होली के अवसर पर रंगों के अलावा पेंट, ग्रीस, चारकोल आदि का भी प्रयोग किया जाता है। कई लोग होली में सिंदूर का भी इस्तेमाल करते हैं। सिंदूर को शरीर पर मलने से सफेद दाग जैसे बदरंग रोग भी पैदा हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि सिंदूर में लेड ऑक्साइड और कई अन्य धातुओं की मिलावट होती है। कई बार सिंदूर में पैराफेनिल डायासिन जैसे घातक पदार्थ भी पाए जाते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं।
आज के समय में होली के अवसर पर इसी तरह के रंगों का अधिक प्रयोग किया जाता है। कई केमिकल युक्त ये रंग धीरे-धीरे त्वचा को जलाते हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल होने वाले रासायनिक साबुन और मिट्टी के तेल से इनसे छुटकारा तो मिल जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान इनका त्वचा पर घातक प्रभाव पड़ा है।
होली की मस्ती में अनजाने में सूखा रंग खाने या रंग का गाढ़ा घोल पीने से भी जान का नुकसान हो सकता है। आजकल लोग होली के मौके पर सूखे रंगों को दांतों में रगड़ने से नहीं चूकते, लेकिन यह मत सोचिए कि इससे उनकी जान भी जा सकती है। अबीर की आंखों में गिरे तो आंखें भी जा सकती हैं।
होली में खुद को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा और सुरक्षित तरीका यही है कि जहां तक हो सके बाजार से सस्ते रंगों का इस्तेमाल न करें। माथे पर सूखे गुलाल का टीका लगाकर या बड़ों के चरणों में लगाकर होली की खुशी मनाई जा सकती है। इस बात का ध्यान जरूर रखें कि सूखे गुलाल को ज्यादा देर तक चेहरे पर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि पसीना आने पर गुलाल आसानी से घुल जाता है और रोमछिद्रों के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है।
शरीर के अधिक संवेदनशील अंगों को विशेष रूप से रंगों से बचाना चाहिए। होली खेलने के तुरंत बाद नहाने का बहुत महत्व है। जब रंग सूख जाते हैं तो ये अत्यधिक हानिकारक हो जाते हैं। रंग छुड़ाने के लिए मोटे कपड़े या कपड़े धोने के साबुन का प्रयोग न करें। हल्दी, दही और चूने के पानी का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। रंग छुड़ाने के बाद कोल्ड क्रीम का इस्तेमाल करने से काफी आराम मिलेगा।
आनंद कु. अनंतता
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News Source: https://royalbulletin.in/holi-special-colors-can-also-be-the-enemy-of-the-skin/17137