जिन दादा ध्यानचंद को सर्मिपत खेल दिवस को देश के हर खिलाड़ी गौरव से मनाते हैं उनकी जादू का असर मेरठ की माटी पर भी है। दादा ने इस क्रांतिधरा पर अपने खेल का जादू तो बिखेरा, साथ ही हॉकी की प्रेरणा रग-रग में भर गए। जिसका असर सालों तक यहां के खिलाड़यिों में दिखा भी।
अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और हॉकी इंडिया के अपांयर्स मैनेजर विरेंद्र सिंह पटेल मानते हैं कि मेरठ की माटी में ही हॉकी का जादू है। बस जरूरत है तो फिर एक जादूगर की जो उसे बिखेर सके। मेरठ में हॉकी का सुनहरा अतीत रहा है। वर्ष 1980 से 1990 तक भारतीय हॉकी टीम में मेरठ से कई खिलाड़ी हुआ करते थे। वर्ष 1982 में तो जूनियर हॉकी टीम में 10-12 खिलाड़ी मेरठ के ही थे।
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विरेंद्र सिंह पटेल बताते हैं वर्ष 1990 तक मेरठ में यूनाइटेड क्लब, हीरोज क्लब, रेंडर्स क्लब, साइनिंग स्टार क्लब आदि के साथ ही 10 से 12 स्कूलों की बेहतरीन टीमें हुआ करती थी। अब एनएएस सहित एक-दो टीमें ही रह गई हैं। इसका कारण कई सालों तक हॉकी संघ का निष्क्रिय होना रहा। जिला हॉकी संघ ने कई सालों तक जिला हॉकी लीग भी नहीं कराई। इससे खिलाड़यिों को अपना हुनर दिखने का अवसर नहीं मिला।