Russo-Ukraine War: सीनियर्स ने जूनियर्स के लिए अपनी जान परवाह न करते हुए, खुद अपने टिकट कैंसिल करवाए, बाइक-टैक्सी और पैदल ही 1000 जूनियर्स को रोमानिया की सीमा पार करवाई

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Russo-Ukraine War: सीनियर्स ने जूनियर्स के लिए अपनी जान परवाह न करते हुए, खुद अपने टिकट कैंसिल करवाए, बाइक-टैक्सी और पैदल ही 1000 जूनियर्स को रोमानिया की सीमा पार करवाई

यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच भारतीय छात्र यूक्रेन की धरती पर मानवता का एक नया अध्याय लिख रहे हैं। यूक्रेन का हर शख्स अपनी जान बचाने के लिए दौड़ रहा है। वहीं आलमगीर और मेरठ के उसके दोस्त एक हजार छात्रों को अपने दम पर ल्वीव से सुरक्षित सीमा तक ले गए। आलमगीर ने इसके लिए करीब ढाई लाख रुपये खर्च किए। साथ ही उनके दोस्तों ने तमाम तरह के इंतजाम किए। इन छात्रों की वापसी 24 फरवरी को होनी थी। टिकट कैंसिल कराने के बाद इन सीनियर्स ने पहले जूनियर्स को उनके घर भेजा और चार दिन बाद खुद अपने घर लौट गए।

बॉर्डर पर जूनियर्स को कभी खाने-पीने का इंतजाम सीनियर्स ने किया।

यूक्रेन के मेरठ किठौर निवासी मोमिन अली का बेटा आलमगीर लविवि में 11वें सेमेस्टर का एमबीबीएस का छात्र है। पिछले पांच दिनों से रोमानियाई सीमा पर भारतीय छात्रों को घर भेजने में लगे ल्वीव से मंगलवार देर रात ऑपरेशन गंगा के तहत भारत लौटे आलमगीर और उसके चार दोस्त भी वापस आ गए हैं। आलमगीर अपने दोस्तों फैजल, उरुज, वसीम के साथ पहले जूनियर्स को वहां से ले गया और फिर खुद घर लौट आया।

अपना टिकट रद्द करने में मदद करें
ल्वीव में एमबीबीएस फाइनल ईयर के छात्र आलमगीर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जैसे ही वहां हालात बिगड़े, अब्बू-अम्मी ने कहा, तुम आज ही लौट आओ। मेरे पास 24 फरवरी का रिटर्न टिकट था। हम चार लोग वापस आने थे। हमारे जाने से पहले ही हमले शुरू हो गए और माहौल बिगड़ने लगा। जब हम रोमानिया की सीमा पर पहुंचे तो वहां के हालात खराब हो चुके थे। सैकड़ों भारतीय छात्र परेशान थे। हमारे जूनियर्स भी वहीं थे। अपने लोगों को इस तरह देखकर हमने अपने टिकट कैंसिल करवाए और पहले जूनियर्स को वहां से निकालने का फैसला किया।

आलमगीर और उनके दोस्तों ने पहले जूनियर्स को घर भेजा फिर खुद लौटे - Dainik Bhaskar
आलमगीर और उनके दोस्त

वो बच्चे हमारी उम्मीद पर टिके रहे
आलम के साथ लौटे फैसल ने कहा कि हमने जूनियर्स को ग्रुप बनाकर टैक्सी से ल्वीव से रोमानिया बॉर्डर भेजा। 20 किमी टैक्सी का किराया 25 हजार रुपए था। यूक्रेन में एक टैक्सी में केवल तीन लोगों के बैठने का नियम है। इसलिए इतने छात्रों को सीमा पर भेजना बहुत मुश्किल था। कई छात्रों को पैदल ले जाया गया, कई को टैक्सी, बस, बाइक मिली, जो कुछ भी मिला, उन्हें सीमा पर ले आए।

खाने-पीने का जो भी इंतजाम हम कर सकते थे, हमने किया और जूनियर्स को दिया, ताकि किसी तरह ये बच्चे सुरक्षित रहें। इसके लिए रास्ते में पड़ने वाले स्थानों पर उनके संपर्क में आए लोगों ने उनकी मदद ली और खाने-पीने का खास इंतजाम किया। जूनियर्स को हम सीनियर्स से काफी उम्मीदें थीं और इसलिए उनकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी थी। इसलिए हमने उन्हें पहले भेजने का फैसला किया और पैसे, भोजन, सामान सहित मदद करने के लिए हम जो कुछ भी कर सकते थे, किया।

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