कोरोना की वजह से लोगों की नींद बुरी तरह से प्रभावित हुई है और क्वालिटी नींद में कमी आई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश और देश के अन्य 25 चिकित्सा संस्थानों के एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है। यह अध्धयन लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन अवधि के बीच नींद की गुणवत्ता में आए बदलावों पर आधारित है।
यह विश्लेषण चार कैटेगरी में किया गया है- पहली कैटेगरी ऐसे लोगों की है, जिनकी खराब नींद पहले की तरह बनी हुई है, दूसरी कैटेगरी में वे लोग हैं, जिनकी दोनों स्थितियों में नींद बेहतर रही है, तीसरी कैटेगरी में आने वाले लोगों की नींद कोरोना अवधि में खराब हुई है और चौथी कैटेगरी में वे लोग हैं, जिनकी नींद में कोरोना काल में सुधार हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार, हेल्थ प्रोफेशनल को छोड़कर सभी पेशेवरों के साथ यह हो रहा है। नींद में आ रही कमी या स्लीपिंग पैटर्न में हुए बदलाव से लोग हताश हो रहे हैं। डॉ गुप्ता ने कहा कि अध्ययन में सामने आया कि सोने के बाद भी लोग तरोताजा नहीं हो रहे हैं।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि नींद नहीं पूरी होने की वजह से पहले जहां 26 फीसदी लोग हताश थे, यह प्रतिशत लॉकडाउन के बाद 48 हो गया। लॉकडाउन के पहले जहां नींद के कारण 19 फीसदी लोगों को बेचैनी की शिकायत थी, तो लॉकडाउन के बाद यह शिकायत 47 प्रतिशत लोगों को हो गई।