
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक केस वापस लेने पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई है। परंतु अगर किसी गंभीर मामले में मुकदमा वापस ले रहे हैं तो उसके बारे में हाईकोर्ट को जरूर बता दें।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक केस वापस लेने पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई है। अगर कोई केस दुर्भावना से दर्ज हुआ है, तो राज्य सरकार उसे वापस ले सकती है। लेकिन उसे आदेश जारी करते समय कारण बताना चाहिए। राज्य सरकार के ऐसे आदेश की हाई कोर्ट में न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए। इसके बाद ही मुकदमा वापस हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मुकदमों के तेज निपटारे के लिए हर राज्य में विशेष कोर्ट बनाने पर सुनवाई चल रही है। कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में मामले के एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने जानकारी दी थी कि कई राज्यों में सरकार बिना उचित कारण बताए जनप्रतिनिधियों के मुकदमे वापस ले रही है। यूपी सरकार ने भी मुजफ्फरनगर दंगों के 77 मुकदमे वापस लेने का आदेश जारी किया है। सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी ने कहा कि संख्या और आरोपों की गंभीरता के हिसाब से जनप्रतिनिधियों के लंबित मामले में चिंता में डालने वाले हैं। जिस रफ्तार से मामलों की जांच चल रही है और मुकदमों की सुनवाई हो रही है, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी होने चाहिए। हंसारिया ने CBI, ED और NIA की तरफ से दाखिल अलग-अलग रिपोर्ट के आधार पर कहा- 51 सांसदों और 71 विधायकों के ऊपर मनी लांड्रिंग के केस हैं। 151 संगीन मामले विशेष अदालतों में हैं, इनमें से 58 उम्र कैद की सज़ा वाले मामले हैं। अधिकतर मामले कई सालों से लंबित हैं।

इस पर चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा, “हमारे पास बहुत समय है। शायद एजेंसियों के पास नहीं है कि वह समीक्षा कर सकें कि क्या समस्या है। हम बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहते।” चीफ जस्टिस ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “आपकी रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है। 15-20 साल तक चार्जशीट दाखिल न करने का कोई कारण नहीं बताया है।

कुछ मामलों में विवादित संपत्ति जब्त की, लेकिन आगे कार्रवाई नहीं की।” सीटर जनरल ने इसका जवाब देते हुए यह माना कि इन मामलों में कई कमियां रह गई हैं। उन्होंने कोर्ट से इस बारे में स्पष्ट निर्देश देने की मांग की। मेहता ने कहा, “कोर्ट यह आदेश दे कि जिन मामलों में जांच लंबित है, उन्हें 6 महीने में पूरा किया जाए। जहां मुकदमा लंबित है, उसके निपटारे की समय सीमा तय हो। अगर किसी मामले की जांच या सुनवाई पर हाई कोर्ट ने रोक लगा रखी है, तो हाई कोर्ट से रोक हटाने पर विचार करने को कहा जाए।”

केंद्र ने मुकदमों के निपटारे के लिए 110 करोड़ रुपये जारी किए
देश की अदालतों में मुकदमों की तादात रोज बढ़ जाती है जो कि चिंता का विषय है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछ था कि वह विशेष अदालतों के गठन के लिए कितना फंड जारी कर रही है। जिससे मुकदमों को जल्दी निपटाया जा सके। इस सवाल पर बुधवार कों केंद्र को ओर से जवाब देते हुए बताया गया हे कि विशेष अदालतों में वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए जनप्रतिनिधियों के मुकदमों के तेज निपटारे के लिए 110 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।

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