आजकल समाज में हम सभी गरीबों, बेसहारों और जरूरतमंदों की हर संभव मदद करने की बात करते हैं, लेकिन एक दशक से देखा जा रहा है कि अगर किसी गरीब को पीटा जाता है, पुलिस ज्यादती कर रही है, चोरी हो रही है। दुकान या मकान या अन्य किसी तरह से उसे प्रताड़ित किया जा रहा है तो सफेदपोश ठेकेदार नजर नहीं आ रहे हैं। अगर पीड़ित व्यक्ति में अपने दम पर कुछ करने का साहस है तो वह कुछ करता है या कुछ को न्याय मिलता है, कुछ को नहीं, लेकिन अगर किसी क्षेत्र में सक्रिय कोई बड़ा व्यक्ति छींक भी दे तो ज्यादातर ठेकेदार व अन्य समाज की मदद करते हैं। कर्ता-धर्ता मधुमक्खी के छत्ते की तरह इकट्ठे हो जाते हैं और कानून-न्याय की बातें करने लगते हैं, लेकिन जब वही समस्या किसी गरीब के साथ हो जाए तो न किसी को न्याय की खबर मिलती है और न ही कोई सोचता है। कोई मशहूर हो तो थानों का घेराव और धरना देने की बात होती है और कोई चेतावनी देने से भी पीछे नहीं हटता। ऐसे में सुरसा की तरह एक सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर नियम-कायदे और दी जाने वाली सुविधाएं समाज के इन तथाकथित ठेकेदारों की नजर में किसके लिए हैं. क्योंकि उन्हें न तो आम आदमी की परेशानी दिखती है और न ही उनके संबंध में कुछ बोलते हैं। लेकिन जब मजबूत छवि वाले किसी के साथ कुछ होता है तो उन्हें सबसे पहले कानून और न्याय की याद आती है।
पिछले कुछ दिनों में यूपी में फायरिंग की ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं। लेकिन कुछ लोग चिल्ला रहे हैं कि सजा मिलनी चाहिए थी लेकिन नियम और कानून के अनुसार। सवाल उठता है कि जब आम आदमी की जमीन पर कब्जा किया जाता है, सरेआम पीटा जाता है या धमकाया जाता है, तो ये लोग जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आते और फिर कानून को याद क्यों नहीं करते? आज कोई कह रहा है कि पूरा परिवार बंट गया है। कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है। ऐसी सोच रखने वाले, बिना आंखों की रोशनी के सुरमा लगाकर इस तरह की चर्चाओं में शामिल लोग, देश-प्रदेश में जगह-जगह आम आदमी को परेशान किया जा रहा है, फिर उन्हें कुछ क्यों नहीं दिख रहा है। पिछले कई दिनों से खबरें पढ़कर ऐसा लग रहा है कि न्याय में विश्वास करने वाले और उसकी बात करने वाले अपने स्वार्थ के लिए छटपटाने लगे हैं. और अपनी मर्जी से कायदे से कार्रवाई की बात गुनगुनाते फिर रहे हैं। अपने को समाज का ठेकेदार समझने वाले ऐसे लोगों को समझना होगा कि रोने से न तो उनका भला होगा और न ही उन्हें इस नाम पर वोट मिलेंगे. जो न्याय पाने के हकदार होते हैं, उनकी असलियत जरूर सामने आ जाती है और ऐसा रोने वालों में हर तरह के लोग होते हैं. मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि मेरी तरह नैनसुख नाम का हर अंधी आंख वाला आदमी चौकस और समझदार हो गया है। अधिकारों की बात करने वालों को पहचानता है। इसलिए अब मगरमच्छों को आंसू बहाना बंद कर देना चाहिए और जो मदद के लिए हाथ बढ़ाएंगे वही आगे बढ़ेंगे जिसे न्याय की दरकार है। नहीं तो कोई कितना भी चिल्लाए, कोई किसी के कहने पर वोट नहीं देने वाला और कोई उसके कहने पर उसका साथ नहीं देगा। अब हमें हकीकत को पहचानना होगा तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी। क्योंकि बहुसंख्यक वही हैं जिनका हम अपने मतलब की पूर्ति के लिए समर्थन करते हैं, और कुछ नहीं।
रवि कुमार बिश्नोई
संस्थापक – अखिल भारतीय समाचार पत्र संघ आइना
आरकेबी फाउंडेशन के संस्थापक, एक राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय सामाजिक सेवा संगठन
संपादक दैनिक केसर फ्रेग्रेन्स टाइम्स
ऑनलाइन समाचार चैनल tajakhabar.com, meerutreport.com
.
News Source: https://meerutreport.com/why-do-some-contractors-of-the-society-remember-the-justice-system-only-when-something-happens-to-a-big-man/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=why-do-some-contractors-of-the-society-remember-the-justice-system-only-when-something-happens-to-a-big-man