भारतीय संस्कृति को अपनाकर कोरोना संक्रमण के खतरे से बचा जा सकता है। सनातन जीवनशैली में सबकुछ नियत था। हाथ जोड़कर अभिवादन हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। सामाजिक दूरी के लिए आज पूरी दुनिया कोरोना से बचाव को इसे स्वीकार रही है। हिन्दुत्व धर्म नहीं बल्कि जीवनशैली है। लेकिन हम पाश्चात्य संस्कृति के चक्कर में सनातन संस्कृति को भुला बैठे। हमें अपनी संस्कृति को अपनाना होगा।
चौधरी चरण सिंह विवि में मंगलवार से शुरू हुए स्वास्थ्य सुरक्षा अभियान में कुलपति प्रो. एनके तनेजा ने यह अपील की। अभियान का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के प्रति जागरुकता लाना है।
ये होंगे सात सूत्र
नमस्ते:
भारतीय संस्कृति में हाथ मिलाने की परंपरा कभी नहीं रही। हाथ जोड़कर अभिवादन करते थे। आज यही हाथ जोड़ने की परंपरा कोरोना जैसी महामारी में बचाव के काम आ रही है।
जूते-चप्पल घर में नहीं:
भारतीय संस्कृति में घर में जूते-चप्पल ले जाने की परंपरा नहीं थी। घर के बाहर जूते-चप्पल उतारते थे। फिर बाहर ही नल पर हाथ-पांव धोकर घर में प्रवेश करते थे। आज कोरोना में फिर से हम यही कर रहे हैं।
नीम के पत्ते:
नीम का पत्ते का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। पहले प्रत्येक घर में नीम का पेड़ होता था। नीम की दातून करते थे। चर्म रोग होने पर नीम के पानी से स्नान करते थे। कान या शरीर में दर्द होने पर नीम के तेल की मालिश करते थे। आज दुनिया मान रही है कि नीम एंटी बैक्टीरियल है।
दो बार स्नान:
दो बार स्नान हमारी संस्कृति का हिस्सा था। सुबह स्नान कर पूजा पाठ करते थे और शाम को स्नान करके संध्या। कोरोना महामारी में भी हम बाहर से आने के बाद स्नान कर रहे हैं।
बासी भोजन:
बासी भोजन हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा। घरों में ताजा भोजन बनता था। तीन समय घरों में ताजा भोजन बनाया जाता था। भोजन बच जाता था तो वह पशुओं को देते थे। लेकिन बासी भोजन नहीं करते थे।
घर के बाहर कपड़े धोना:
पुरातन समय में लोग घर के बाहर तालाब या फिर नदी में कपड़े धोते थे। घर के अंदर कभी कपड़े नहीं धोये जाते थे। कोरोना महामारी में फिर यही प्रयास है कि बाहर से आने पर कपड़े बाहर ही धोए जाएं।
योग:
भारतीय संस्कृति में योग सर्वोपरि रहा है। इससे हम अपनी श्वसन क्रिया मजबूत करते थे। योग से शारीरिक मजबूती आती है। कोरोना सबसे पहले श्वसन तंत्र पर हमला करता है। ऐसे में हमें योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा।