मेरठ जिले में तीन अप्रैल से शुरू हुईं सामुदायिक रसोइयों पर पांच करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। प्रशासन ने बिल तैयार कर शासन को भेज दिया है। अभी तक शासन से धनराशि नही मिल पाई है। ऐसे में ठेकेदार भी मजदूरों का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। 62 दिनों तक चलीं सामुदायिक रसोई में खाने के लाखों पैकेट तैयार हुए।
लॉकडाउन के दौरान घर-घर जाकर सुबह-शाम खाने के पैकेट बांटने की व्यवस्था की गई थी। करीब 23 लाख 55 हजार 560 भोजन के पैकेट 62 दिनों में बांटे गए। जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाने के लिए सेक्टर मजिस्ट्रेट की ड्यूटी लगाई गई थी। सुबह 10 बजे तक और शाम 6 बजे तक खाना पहुंचाने का समय तय किया गया था।
सामुदायिक रसोई का विवादों से भी नाता रहा। भाजपा के नेताओं ने सवाल खड़े कर बिना टेंडर के ठेका देने और करोड़ों के भुगतान करने की शिकायत उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से की थी। इसके बाद प्रशासन ने टेंडर निकालकर सामुदायिक रसोई चलाई। वहीं टेंडर फाइनल होने के करीब 15 दिन रसोई को बंद कर दिया गया।