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पोक्सो अपराधों के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ की संपर्क जरूरी करना दस्ताने पहनकर यौन शोषण करने वाले को बरी करना है

पोक्सो अपराधों के लिए 'त्वचा से त्वचा' की संपर्क जरूरी करना दस्ताने पहनकर यौन शोषण करने वाले को बरी करना है
अटॉर्नी जनरल ने जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ के सामने इस फैसले को खतरनाक और अपमानजनक मिसाल बताया और फैसले को रद्द करने की मांग की।
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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस विवादास्पद फैसले को सुप्रीम कोर्ट से पलटने का आग्रह किया, जिसमें कहा पॉस्को एक्ट के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों के ऊपर से टटोलने पर पोक्सो की धारा 8 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा क्योंकि आरोपी और नाबालिग के बीच त्वचा से त्वचा संपर्क नहीं हुआ है।Read Also:-राहुल का निजीकरण पर आरोप: कांग्रेस नेता बोले- देश में 70 साल में बनी संपत्ति बेच रही है सरकार; स्मृति ने किया पलटवार- हमने कांग्रेस के लुटेरों से देश का पैसा बचाया

पोक्सो अपराधों के लिए 'त्वचा से त्वचा' की संपर्क जरूरी करना दस्ताने पहनकर यौन शोषण करने वाले को बरी करना है

अटॉर्नी जनरल ने जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ के सामने इस फैसले को खतरनाक और अपमानजनक मिसाल बताया। फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए, कानून अधिकारी ने जस्टिस यूयू ललित और अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष दलीलें पेश कीं और कहा,  “मान लीजिए, कल कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर नाबालिग के पूरे शरीर को छूता है, तो उसे इस फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न के लिए दंडित नहीं किया जाएगा। यह अपमानजनक है। उच्च न्यायालय ने इस फैसले के दूरगामी परिणाम नहीं देखे।”

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उन्होंने POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न की परिभाषा का भी उल्लेख किया और कहा कि यह तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान करता है और IPC की धारा 354A के तहत एक महिला की शील भंग करने के अपराध के समान है।

दरअसल उच्च न्यायालय (नागपुर पीठ) ने एक पॉस्को एक्ट के आरोपी को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि धारा 8 पोक्सो के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए त्वचा से त्वचा संपर्क होना चाहिए। आरोपी द्वारा नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों के ऊपर से टटोलने पर पोक्सो की धारा 8 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोपी का यह कृत्य धारा 354 आईपीसी के तहत छेड़छाड़ के एक कमतर अपराध के समान होगा। केंद्र सरकार की अपील पर इस फैसले के संचालन पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

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पीठ ने कहा कि नोटिस के बावजूद आरोपी के लिए कोई प्रतिनिधित्व पेश नहीं हुआ। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी से कहा कि अभियुक्तों के लिए एडवोकेट-आन-रिकॉर्ड के साथ दो वरिष्ठ अधिवक्ता उपलब्ध करवाए। मामलों की अंतिम सुनवाई 14 सितंबर को होगी।

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